
Harsh Nath Temple Sikar Rajasthan In Hindi: हर्ष पर्वत के साथ जुड़ी है भगवान शिव से संबंधित कथा, हर्षनाथ मंदिर सीकर जिले में स्थित एक अति प्राचीन मंदिर है जो सीकर शहर से लगभग 16 किमी की दूरी पर पहाड़ी पर हर्ष या हर्ष गिरि स्थित है। हर्षनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें इस मंदिर में “हर्षनाथ” के नाम से जाना जाता है। हर्षनाथ मंदिर समुद्र तल से लगभग 914 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
हर्षनाथ मंदिर कैसे पहुंचे ? – How to Reach Harshnath Temple Sikar Rajasthan In Hindi
दोस्तों आप जानते हैं कि हर्षनाथ मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है, इसलिए सबसे पहले आपको सीकर जिले में पहुंचना होगा। हर्षनाथ मंदिर जाने के बारे में पूरी जानकारी के साथ बताया है जिससे आपको हर्षनाथ मंदिर जाने में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होगी।
हवाई मार्ग के द्वारा – हर्षनाथ मंदिर का सबसे निकटतम हवाई अड्डा झुंझुनू हवाई अड्डा है जो इस मंदिर से लगभग 87 किमी दूर पर स्थित है। एयरपोर्ट से उतरकर आप वहां से हर्षनाथ मंदिर जाने के लिए निजी बसें और टैक्सी कर सकते हैं।
रेल मार्ग के द्वारा – हर्षनाथ मंदिर का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन गोरियान रेलवे स्टेशन है जो हर्षनाथ मंदिर से लगभग 28 किमी दूर पर स्थित है गोरियन रेलवे स्टेशन से उतरकर आप वहां से हर्षनाथ मंदिर जाने के लिए बस और टैक्सी सेवाएं ले सकते हैं।
सड़क मार्ग के द्वारा – हर्षनाथ मंदिर जाने के लिए आपको पहले सीकर जिले में राजस्थान सार्वजनिक परिवहन बस स्टैंड जाना होगा और इस बस स्टॉप और हर्षनाथ मंदिर के बीच की दूरी लगभग 28 किमी है। बस स्टॉप से उतरकर आप वहां से टैक्सी के माध्यम से आसानी से हर्षनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं।
हर्षनाथ मंदिर सीकर की खोज किसने की थी।
हर्षनाथ मंदिर की खोज सन् 1834 ई. में, सार्जेंट ई. डीन ने की थी। उन्होंने हर्षनाथ के महत्वपूर्ण अभिलेखों की खोज के साथ साथ हर्षनाथ के प्रसिद्ध शिलालेख की भी खोज की थी। यह प्रसिद्ध शिलालेख वर्तमान में सीकर संग्रहालय में संरक्षित है। इस शिलालेख के आरंभ में हर्ष के नाम से शिव के हर्ष पर्वत और पूजा के उद्देश्य से बने मंदिर की स्तुति है।
भगवान शिव से जुड़ी है “हर्ष पर्वत” से जुड़ी एक कथा है।
हर्ष पर्वत पर भगवान शंकर का प्राचीन एवं प्रसिद्ध हर्षनाथ मंदिर पूर्वाभिमुख है तथा पर्वत के उत्तरी भाग के किनारे समतल भूभाग पर स्थित है। हर्षनाथ मंदिर से एक महत्वपूर्ण शिलालेख प्राप्त हुआ था, जो अब राजकुमार हरदयाल सिंह राजकीय संग्रहालय, सीकर में रखा हुआ है।
काले पत्थर पर अंकित 1030 वी.एस. (973 ई.) शिलालेख की भाषा संस्कृत है तथा लिपि देवनागरी विकसित है।इसमें चौहान शासकों की वंशावली दी गई है। इसलिए यह चौहान वंश के राजनीतिक इतिहास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें हर्षनगरी, हर्षनगरी और हर्षनाथ का भी विवरण दिया गया है। इसमें कहा गया है कि हर्ष नगरी और हर्षनाथ मंदिर की स्थापना संवत 1018 में चौहान राजा सिंहराज ने की थी और मंदिर को पूरा करने का कार्य उनके उत्तराधिकारी राजा विग्रहराज ने संवत 1030 में किया था।
इन मंदिरों के अवशेषों पर मिले एक शिलालेख में कहा गया है कि यहां कुल मिलाकर यहां के 84 मंदिरों में यहां स्थित सभी मंदिर खंडहर में हैं, जो पहले गौरवशाली रहे होंगे। कहा जाता है कि 1679 ई. में मुगल बादशाह औरंगजेब के निर्देश पर सेनापति खान जहां बहादुर ने जानबूझकर इस क्षेत्र के मंदिरों को नष्ट कर दिया था।
हर्ष पर्वत पर रोप-वे शुरू करने की तैयारी है। यह प्रदेश में तीसरा और सबसे ऊंचा रोप-वे होगा।
ऐसा माना जाता है कि एक पौराणिक घटना के कारण इस पर्वत का नाम हर्ष पड़ा। बताया जाता है कि एक समय दुर्दान्त राक्षसों ने इन्द्र और अन्य देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया था, जिसके बाद भगवान शिव ने इसी पर्वत पर इन राक्षसों का संहार किया था। इससे देवताओं में अपार हर्ष हुआ और उन्होंने शंकर की आराधना व स्तुति की। इसके बाद से इस पर्वत को हर्ष पर्वत एवं भगवान शंकर को हर्षनाथ कहा जाने लगा। जबकि एक पौराणिक दन्त कथा के अनुसार हर्ष को जीणमाता का भाई भी माना जाता है।
लोक मान्यताओं के अनुसार जीण का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ। उनके भाई का नाम हर्ष था जो बहुत खुशी से रहते थे। एक बार जीण का अपनी भाभी के साथ विवाद हो गया और इसी विवाद के चलते जीण और हर्ष में नाराजगी हो गयी। इसके बाद जीण आरावली के ‘काजल शिखर’ पर पहुँच कर तपस्या करने लगीं। मान्यताओं के अनुसार इसी प्रभाव से वो बाद में देवी रूप में परिवर्तित हुई। देवी जीण के भाई हर्ष ने अपनी रूठी हुई बहिन से घर वापस जाने के लिए बहुत अनुनय-विनय की पर वह न मानी।
तब हर्ष ने भी घर वापस लौटने का विचार त्याग दिया तथा समीपवर्ती पर्वत शिखर पर कठोर तपस्या की। इस प्रकार जीणमाता का शक्तिपीठ और हर्षनाथ भैरव भाई-बहिन के निश्छल और अमर प्रेम बनकर जन-जन आस्था के केंद्र बन गये। हर्ष और जीण से सम्बंधित लोकगीत शेखावाटी में बहुत लोकप्रिय है।
यहां अरडूसा नामक पौधे प्रचुर मात्रा में खड़े हैं जिससे खांसी की दवा ग्लाइकाडिनटर्पवसाका बनती है। हर्ष पर्वत की सुन्दरता बसन्त ऋतू मे मोहक हो जाती है क्योंकि हरियाली की चादर इस पर्वत को अपने आँचल मे समेत लेती है।
हर्ष पर्वत पर मुख्य आकर्षण
हर्ष पर्वत पर मुख्य मंदिर भगवान शिव के दुर्लभ पंचमुखी शिवलिंग प्रतिमा वाला माना जाता है, जो अपने आप में काफी अनूठा और गौरवमयी है। इस शिव मंदिर की मूर्तियां आश्चर्यजनक रूप से सुन्दर हैं, जिनमें देवताओं व असुरों की प्रतिमाएं कला का उत्कृष्ट नमूना हैं। इनकी रचना शैली की सरलता, गढ़न की कुकुमारता व सुडौलता तथा अंग विन्यास और मुखाकृति का सौष्ठव दर्शनीय है। इन पत्थरों पर की गई कारीगरी यह बतलाती है कि उस समय के सिलावट कारीगर व शिल्पी अपनी कला को किस प्रकार सजीव बनाने में निपुण थे। मंदिर की दीवार व छतों पर की गई चित्रकारी दर्शनीय है। मंदिर परिसर में बीचोंबीच शिव के वाहन नंदी की विशालकाय संगमरमरी प्रतिमा है, जो यहां आने वाले पर्यटकों और दर्शनार्थियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है।
इस मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं, सुंदरियों, अप्सराओं समेत अनेकों सुंदर मूतियां और कलाकृतियां मौजूद है। जबकि कुछ कलाकृतियों को मंदिर की दिवारों में चुनवा दिया गया है। मध्यकालीन स्थापत्य एवं मूर्तिकला की ये उत्कृष्ट कलाकृतियां हैं, जिन्हें देखकर आज भी हर कोई खुद को इतिहास के समंदर में गोते लगाते हुए महसूस कर सकता है। धार्मिक मान्यताओं के चलते दूरदराज से आने वाले श्रद्धालु अपनी कार्य सिद्धी के लिए यहां डोरे व लच्छियां बांधकर मनोकामनाएं मांगते हैं। इसके अलावा आसपास के लोगों में ऐसी भी मान्यताएं है कि यहां पत्थरों से घर बनाने से हर्षनाथ उनके घर की मनोकामना भी जरूर पूरी करते हैं।
हर्ष पर्वत पर विदेशी कम्पनी इनरकोन द्वारा पवन चक्कियां लगाई गयी हैं जिनके सैंकड़ों फीट पंख वायु वेग से घूमते हैं तथा विद्युत का उत्पादन करते हैं। दूर से इन टावरों के पंखे घूमते बड़े लुभावने लगते हैं।
मैसर्स इनरकोन इंडिया लिमिटेड ने वर्ष 2004 में 7.2 मेगावाट पवन विद्युत परियोजना प्रारम्भ की। यहां पवन को ऊर्जा में परिवर्तित करने वाले विशालकाय टावर लगे हुए हैं। यहां विधुत ऊर्जा का उत्पादन होता है।
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